रावण यानि "करना", राम यानि बस "होना"
मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में है। रावण यानि "करना" यानि सारी व्यर्थ की भाग-दौड़ और क़वायद, अतीत की निराशाएँ और भविष्य की चिंताएं। राम यानि बस "होना" यानि शान्त और मौन होकर पूर्ण सहजता से अपने में अभी और यहीं में स्थित हो जाना।
करना जैसे क़ैदे-ज़ीस्त कोई, होना सारे ग़म से नजात जैसे। करना जैसे सीने में आग, सर पे जुनूँ, बेताबी, बेचैनी, छटपटाहट, जुस्तुजू। होना लेकिन जैसे इन सब का न होना, जैसे चांदनी रात, उस रात का सुकूँ, घास में ठहरी शबनम की बूँद।
रावण यानि दौड़ता-भागता मन यानि "मैं"। मैं का मरना यानि राम। इसी मरने के बारे में गोरखनाथ जी ने कहा "मरो हे जोगी मरो, मरो मरण है मीठा" और कबीरदास जी ने कहा "जिस मरने से जग डरे मेरो मन आनन्द, कब मरिहुँ कब भेटिहुँ पूरण परमानन्द"। राम यानि असीम, निराकार पूरण परमानन्द। मन से रावण जो निकाले राम उसके मन में है।
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