तुम हताश क्यों होते हो ?

उठो और चलो
तुम हताश क्यों होते हो ?
दुःख तोआएँगे ही
इन्हें देख क्यों रोते हो ?
जब तक कि ये सफ़र है
ज़िन्दगी की राहगुज़र है
सफ़र में धूप तो रहेगी
साये को सर पे न पाकर
तुम उदास क्यों होते हो ?
तुम हताश क्यों होते हो ?

जब तक कि ये मेला है
सुख-दुःख का रेला है
जान कि तू अकेला है
हाथों से हाथ छूटेंगे ही
राहों में साथ छूटेंगे ही
आज जो तेरे संग हैं
कल तुमसे रूठेंगे ही
जो कोई आज रूठा तो
तुम निराश क्यों होते हो ?
तुम हताश क्यों होते हो ?
तुम हताश क्यों होते हो ?

दौड़ चुके हो बहुत, अब सुनो

दौड़ो, भागो, थको
और थक के सो जाओ
उठो, फिर दौड़ो, थको
और फिर सो जाओ
फिर उठो, दौड़ो, थको
और सो जाओ
कब से होता आ रहा है !
कब तक होता रहेगा ?
तेरी मंज़िल जब तक है बाहर
तब तक होता रहेगा

चाहते हो जो तुम
सुख सारे बटोर कर
रेत को मुठ्ठी में भर
सब हासिल कर लेना
पर ज़िन्दगी दुखों के सिवा कुछ भी नहीं
रेत भी हाथों से फिसल ही जाती
हासिल कुछ होता नहीं
जमा कुछ भी रहता नहीं

दौड़ चुके हो बहुत, अब सुनो
थम जाओ, समझो, जान लो
जिस दिशा में भाग रहे थे
उसे उल्टी कर लो
साँसों की डोर थाम
अंदर की ओर चलो
जागो एक बार ऐसे
की फिर सोना न पड़े

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...