दौड़ो, भागो, थको
और थक के सो जाओ
उठो, फिर दौड़ो, थको
और फिर सो जाओ
फिर उठो, दौड़ो, थको
और सो जाओ
कब से होता आ रहा है !
कब तक होता रहेगा ?
तेरी मंज़िल जब तक है बाहर
तब तक होता रहेगा
चाहते हो जो तुम
सुख सारे बटोर कर
रेत को मुठ्ठी में भर
सब हासिल कर लेना
पर ज़िन्दगी दुखों के सिवा कुछ भी नहीं
रेत भी हाथों से फिसल ही जाती
हासिल कुछ होता नहीं
जमा कुछ भी रहता नहीं
दौड़ चुके हो बहुत, अब सुनो
थम जाओ, समझो, जान लो
जिस दिशा में भाग रहे थे
उसे उल्टी कर लो
साँसों की डोर थाम
अंदर की ओर चलो
जागो एक बार ऐसे
की फिर सोना न पड़े
और थक के सो जाओ
उठो, फिर दौड़ो, थको
और फिर सो जाओ
फिर उठो, दौड़ो, थको
और सो जाओ
कब से होता आ रहा है !
कब तक होता रहेगा ?
तेरी मंज़िल जब तक है बाहर
तब तक होता रहेगा
चाहते हो जो तुम
सुख सारे बटोर कर
रेत को मुठ्ठी में भर
सब हासिल कर लेना
पर ज़िन्दगी दुखों के सिवा कुछ भी नहीं
रेत भी हाथों से फिसल ही जाती
हासिल कुछ होता नहीं
जमा कुछ भी रहता नहीं
दौड़ चुके हो बहुत, अब सुनो
थम जाओ, समझो, जान लो
जिस दिशा में भाग रहे थे
उसे उल्टी कर लो
साँसों की डोर थाम
अंदर की ओर चलो
जागो एक बार ऐसे
की फिर सोना न पड़े
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