एक दिन यूँ होगा

वक़्त गुज़रता जाएगा
और एक दिन यूँ होगा
उस दिन भी जो बाँकी दिनों जैसा ही होगा
सूरज चुपके से आसमां में आ रहा होगा
और ज़माना धीरे से रफ़्तार पकड़ रहा होगा
उस दिन भी कोई शख़्स कहीं जा रहा होगा
तो कोई कहीं से आ रहा होगा
कोई कुछ कर रहा होगा
ताकि उसके बाद कुछ और कर सके 
तो कोई कहीं जाने की तैयारी कर रहा होगा

तुम भी हर दिन की तरह ही
इधर-उधर भाग रहे होगे
उस दिन भी तुम ख़्वाहिशों को दूर झटक रहे होगे
वो जो उस दिन भी तेरे पाँवों से लटक रही होंगी
और गुज़ारिश कर रही होंगी वो तुमसे
कि आज कहीं भी मत जाओ
कि आज कुछ मत निपटाओ
कि आज कुछ भी नहीं है ज़रूरी
कि आज बस बैठे रहो
या औंधे पड़े बिस्तर पे लेटे रहो
या हॉल में पसरे रहो दिन भर
या फिर बालकॉनी में ही पड़े रहो
उकेरो डायरी में वो नज़में जिन्हें दिल में समेटे हो
साहिर की नयी किताब जो मंगाई है उसमें ही डूब जाओ
या जगजीत की फ़ेवरिट प्लेलिस्ट ही लगा लो यू-ट्यूब पर
पर आज घर की दहलीज पार मत करो
बस यूँ ही बैठे रहो तन्हाइयों में
ये ज़िन्दगी जो उलझ सी गयी है
गिरहें इसकी सुलझ सी जाएँगी
तुम जो आज अगर रुक जाओ तो
एक सिरे से थोड़ी ढील मिल जायेगी
तो गिरहें सुलझने लगेंगी
नयी गिरहें और न पड़ेंगी

तुम्हें बैठना था न ख़ुद के साथ ?
इतनी आवाज़ें जो गूँज रही थीं अंदर
उन्हें सुनना था न तुम्हें ?
आज तक उन्हें अनसुनी करते रहे तुम
कहीं-न-कहीं जाते रहे हर दिन
कुछ-न-कुछ करते रहे हर पल
और दिन यूँ बीतते गए
रातें गुज़रती गईं
ख़्वाब तुम्हारे दम तोड़ते गए
तुम ख़ुद से ही दूर होते चले गए

पर उस दिन कुछ यूँ होगा
जब ज़माना अपनी रफ़्तार में दौड़ रहा होगा
और सभी कहीं-न-कहीं मशरूफ़ होंगे हर दिन की तरह
तुम्हारी साँसें धीमी पड़ने लगेंगी
आँखों के आगे अँधेरा छाने लगेगा
न कुछ सोच पाओगे, न चल पाओगे, न बोल पाओगे
तुम मन-ही-मन अपने ख़ुदा को याद करोगे
उससे मिन्नतें करोगे
कि अता कर दे वो तुम्हें थोड़ी सी और मोहलत
कि तुमने तो ज़िन्दगी अभी तक जी ही नहीं है
कि थोड़ा वक़्त मिले तो
कर लोगे वो सब जो करना चाहते थे पर कर न सके
थोड़ा वक़्त ताकि तुम ख़ुद के साथ बैठ सको
और अपनी तरह से जीना सीख सको
ताकि ख़्वाबों को फिर ज़िंदा कर सको
और उन ख़्वाबों को जी सको
पर इतने में साँसें रुक जाएँगी
आँखों की पलकें हिला न सकोगे
ज़िन्दगी का दामन हाथों से छूट जाएगा
और तुम इस जहां से चले जा चुके होगे

अच्छा मान लो 
कि ये बस बुरा सा एक ख़्वाब ही था
और इसे देख कर तुम नींद से जग पड़े थे
फिर समझ लो कि ख़ुदा ने सुन ली  है तुम्हारी
थोड़ी मोहलत और मिल गयी है तुम्हें
तो क्या कल का सबेरा नया होगा ?
क्या तुम दिल की सुनोगे कल, रुक जाओगे ?
या फिर वही होगा जो होता आया है आज तक ?
चलो, तुम्हीं पर छोड़ देता हूँ

अंतिम लक्ष्य

मेरा अंतिम लक्ष्य
न कोई उत्सव
न ही सन्नाटा
न चुनौतियाँ 
न उन पे विजय
न ही मृत्यु
और न मृत्यु पे विजय
न ऐश्वर्य
न ही वैराग्य

मेरा अंतिम लक्ष्य
शून्य
मन की वो स्थिति
जहाँ कोई लक्ष्य नहीं
न भय, न मोह
आशा न निराशा
न विजय की लालसा
न पराजय का भय
न अपूरित कामनाएँ
न नवीन स्वप्न
न कहीं होने की चाह
न कुछ बनने की, न बनाने की

किसी से कोई उम्मीद नहीं
न मंज़िल कोई, न राहों का छलावा
चढ़ने को न कोई सोपान
न विजित होने को कोई शिखर
बस आकाश एक विस्तृत असीमित
शांति और संतोष से प्रकाशित

स्वयं में एक विश्वास कि 
परिस्थितियाँ, अनुकूल या प्रतिकूल
लहरों की भाँति आएँ और चली जाएँ
और मैं रहूँ तटस्थ
न अचंभित, न विचलित
अपने में होकर पूर्णतः स्थित
बस शून्य में मिलकर
ऐसे एक हो जाऊँ
कि मैं का अवशेष न रहे





बहता रहूँ

जीवन की धार बहती रहे
अबाध मैं भी संग बहूँ
बाधाएँ न थाम सकें
किसी के रोके से ना रुकूँ

पाषाणों से टकराऊँ
राहों में जो मिले खड़े
कंठों में उतरूँ ऐसे
फिर कोई प्यासा न रहे

पर्वत पे हूँ उत्श्रृंखल
विनय का परन्तु भाव रहे
बस्तियों से जब निकलूँ
मर्यादित मदिर प्रवाह रहे

ढलानों में सिमट जाऊँ
मैदानों में फैलाव मिले
समर्पण सागर में अंतिम
फिर न कोई चाह रहे 

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...