जग का तम मिटाने वाला सूरज बन तू 
भू की प्यास बुझाने वाला बादल बन तू 
नदिया, दरिया, दरख़्त, पहाड़ सा कोई 
हँस  कर सब लुटाने वाला पागल बन तू 

जामे-फ़ना

असल (Original)

अक्ल के मदरसे से उठ, इश्क़ के मयक़दे में आ 
जामे-फ़ना-ओ-बेख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो 

- हज़रत शाह नियाज़ 

नक़ल (Duplicate)

अक्ल की टोपी फ़ेंक दी 
ली इश्क़ की चादर ओढ़ 
जामे-फ़ना जो पी ली तो 
मैं बेख़ुद हुई बेजोड़ 

चाँद

आसमां शांत है 
बादल की कोई चादर नहीं 
उसमें एक भरा पूरा 
चाँद चमक रहा है 

नीचे एक झील है 
बिल्कुल शांत 
उसमे कोई तरंग नहीं 
एक आइने की तरह ही उसमें 
पूरा चाँद चमक रहा है 

सफ़र है तो किसी मंज़िल पे रुकता क्यों नहीं ?
सब जा रहे हैं कहाँ कोई कुछ कहता क्यों नहीं ?

बदल जाती है मेरे आस-पास की हर एक चीज 
मेरे अंदर जो मैं है वो कभी बदलता क्यों नहीं ?

कहते हैं हर शै में है और हर ज़र्रे में है ख़ुदा 
ढूँढता हूँ हर जगह पर मैं उसे पाता क्यों नहीं ?

बचकर दुनिया से कभी जो अंदर जाता हूँ मैं 
जिसे पाता हूँ मैं वहाँ उसे जानता क्यों नहीं ?

होता है यूँ भी कभी होकर भी मैं यहाँ होता नहीं 
होता हूँ जहाँ भी मैं वहीं रह जाता क्यों नहीं ?

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...