अक्ल के मदरसे से उठ, इश्क़ के मयक़दे में आ
जामे-फ़ना-ओ-बेख़ुदी अब तो पिया जो हो सो हो
- हज़रत शाह नियाज़
नक़ल (Duplicate)
अक्ल की टोपी फ़ेंक दी
ली इश्क़ की चादर ओढ़
जामे-फ़ना जो पी ली तो
मैं बेख़ुद हुई बेजोड़
वो कहते हैं मुझसे अब तुम्हें मरना होगा शूली पर चढ़ना होगा खेले खूब धूम मचाया जग से क्या कुछ न पाया पर तुम पा न सके उसे जिसकी तुम्हें जु...
No comments:
Post a Comment