सब जा रहे हैं कहाँ कोई कुछ कहता क्यों नहीं ?
बदल जाती है मेरे आस-पास की हर एक चीज
मेरे अंदर जो मैं है वो कभी बदलता क्यों नहीं ?
कहते हैं हर शै में है और हर ज़र्रे में है ख़ुदा
ढूँढता हूँ हर जगह पर मैं उसे पाता क्यों नहीं ?
बचकर दुनिया से कभी जो अंदर जाता हूँ मैं
जिसे पाता हूँ मैं वहाँ उसे जानता क्यों नहीं ?
होता है यूँ भी कभी होकर भी मैं यहाँ होता नहीं
होता हूँ जहाँ भी मैं वहीं रह जाता क्यों नहीं ?
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