ख़ुदा के घर चलो

ज़िन्दगी कहीं मुड़ी
मैं कहीं और मुड़ गया
ख़ुद से ही बिछड़ गया
दुनिया से जब जुड़ गया

किस ओर मुड़ूँ मैं
किस ओर चलूँ मैं
है प्रश्न वही फिर
सामने मेरे खड़ा

ये मेरी आँखों का धुँआ है
या चराग बुझ रहे कहीं
चलो ख़ुदा के घर चलो
बाहर तंग अँधेरा है 

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