उलझन

दिल को समझाता हूँ
ख़ुद को बहलाता हूँ
मंज़िल तक नज़र नहीं
लेकिन चलता जाता हूँ

आँखों में धुँआ सा है
रस्ता भी सुना सा है
मन क्या ढूँढ़ रहा है
कुछ नहीं अपना सा है

सफ़र ये जो ज़िन्दगी है
कब से भरमा रही है
किस ज़ानिब मुझे जाना है
कहाँ ले के जा रही है 

No comments:

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...