बैठ गया क्यों हार कर
राही तू यूँ राहगुजर पर
चल उठ कुछ ईरादा कर
नज़र कर अपनी मंज़िल पर
कदम क्यों तेरे डगमगाए
चाहे लाख मुसीबतें आएं
संदेह के बादल मंडराएं
आत्म-विश्वास कम न हो पाए
राह जो आगे बंद मिले
चिंता क्यों मन में पले
दुगुने कर ले हौसले
बंद सारी राहें खुलें
सफ़र जो थोड़ा मुश्किल लगे
बुझा-बुझा क्यों दिल लगे
मौजें जो क़ातिल लगें
और दूर तुझसे साहिल लगे
ख़ुद से कर ले अब फैसला
कम न होगा कभी हौसला
चलता रहे चाहे अकेला
या संग चले कोई काफ़िला
राही तू यूँ राहगुजर पर
चल उठ कुछ ईरादा कर
नज़र कर अपनी मंज़िल पर
कदम क्यों तेरे डगमगाए
चाहे लाख मुसीबतें आएं
संदेह के बादल मंडराएं
आत्म-विश्वास कम न हो पाए
राह जो आगे बंद मिले
चिंता क्यों मन में पले
दुगुने कर ले हौसले
बंद सारी राहें खुलें
सफ़र जो थोड़ा मुश्किल लगे
बुझा-बुझा क्यों दिल लगे
मौजें जो क़ातिल लगें
और दूर तुझसे साहिल लगे
ख़ुद से कर ले अब फैसला
कम न होगा कभी हौसला
चलता रहे चाहे अकेला
या संग चले कोई काफ़िला
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