ज़िन्दगी थोड़ी मुझे भी चाहिए

इस शहर में अगर ज़िन्दगी है तो थोड़ी मुझे भी चाहिए
बाँकी हवाओं में गर ताजगी है तो थोड़ी मुझे भी चाहिए

दौर ये तूफां का है, चराग बुझे हुए हैं सारे
आज सितारों में गर रौशनी है तो थोड़ी मुझे भी चाहिए

हर तरफ शोर कितना, चीखों की आवाज़ें हैं 
बची कहीं गर खामोशी है तो थोड़ी मुझे भी चाहिए

सहरे की धूप में चल चल कर थक चुका हूँ
कहीं बादलों में गर नमी है तो थोड़ी मुझे भी चाहिए 

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