बैठ गए यूँ ही थोड़ा सा लेने को दम
पिछड़ गए हैं माना, पर हारे नहीं हैं हम
चलते चलते राहों में थोड़े भटक से गए
मुड़ जाएँगे फिर से सही दिशा में कदम
हौसला है पा लेंगे मंज़िल को एक दिन
बदल जाने दो अगर बदलते हैं मौसम
पड़ाव को सफ़र की इंतेहा समझ बैठे
हरियाली देख हो गए थे थोड़े खुशफ़हम
चलो चलें फिर से कि काफ़िला चल पड़ा
शबो-दिन चलना है मुसाफ़िर का करम
पिछड़ गए हैं माना, पर हारे नहीं हैं हम
चलते चलते राहों में थोड़े भटक से गए
मुड़ जाएँगे फिर से सही दिशा में कदम
हौसला है पा लेंगे मंज़िल को एक दिन
बदल जाने दो अगर बदलते हैं मौसम
पड़ाव को सफ़र की इंतेहा समझ बैठे
हरियाली देख हो गए थे थोड़े खुशफ़हम
चलो चलें फिर से कि काफ़िला चल पड़ा
शबो-दिन चलना है मुसाफ़िर का करम
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