एक साल और बीता

जीवन का एक साल और बीत गया
वक़्त मेरी लम्बी कर अतीत गया
संघर्ष का क्रम मगर जारी रहा
धूप-छाँव में द्वंद्व भारी रहा
पाने-खोने का चलता रहा सिलसिला
मौसम बदलते रहे रुका नहीं काफ़िला

सफ़र का ये पड़ाव भी निकल गया
एक  और दरिया सागर से मिल गया
रुख़सार से नक़ाब थोड़ा और हट गया
साया ज़िन्दगी का कुछ और सिमट गया
वाक़िफ़ी इससे थोड़ी और पुरानी हो गई
राहें कुछ और अपनी पहचानी हो गईं

भँवर मगर और गहराता चला गया
ख़ुद को मैं और कमजोर पाता चला गया
जीत-हार से ख़ुद को ऊपर उठाता चला गया
मैं जीवन का साथ बस निभाता चला गया

अपने दामन में अब यादें भर रहा हूँ
आगे सफ़र की अभी तैयारी कर रहा हूँ
अभी ऐसे जाने कितने और मुक़ाम आएँगे
हर बार हम यूँ ही आज़माये जाएँगे 

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