ऑफिस में एक आफ्टर-नून

उस आफ्टर-नून
जब अचानक मौसम
बदल सा गया था
फ्लोर पे एक कॉर्नर में
टेबल पर रखे लैपटॉप से
दो थकी आँखें निकलीं
और धीरे-धीरे
गिलास-विण्डो से
बाहर चलकर
आसमां में
तैरते बादलों के टुकड़ों पर
जाकर टिक गयीं

चेयर पे आगे-पीछे होते
उस इंसान को
वो नज़्म याद आ गई
जो कल रात
मुकम्मल होने से
पहले ही सो गई थी
और जिसे वो
घर पर ही छोड़ कर
सुबह-सुबह ऑफिस
आ गया था

फिर घड़ी पर
उसकी नज़रें गईं
और एक आह सी
निकल गई
अपनी अधूरी नज़्म से
मिलने के लिए
उसे अभी भी
कुछ घंटों का
इंतज़ार करना था



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