बड़े शहर में

बना लिया एक बड़ा सा घर
बड़े से एक शहर में
अपनों से दूर हो गया
पर मैं इस चक्कर में 
अपनों से दूर तो हुआ
ख़ुद से भी दूरी बढ़ी
ज़िन्दगी मेरी खुश थी पर
अपने पुराने घर में

वहाँ खुशियों का अम्बार था
संग पूरा परिवार था
हर पल था मस्ती का
हर दिन रविवार था
बड़े हुए विवश हुए
इधर-उधर बिखर गए
खो गया कहीं
वो जो सुकून था क़रार था 

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