वो अफ़साने किसको सुनाते
इसलिए चुप रह जाते हैं
हैं कुछ लोग जो जाकर भी
यादों में रह जाते हैं

छोड़कर दामन जब था जाना
मेरी राहों में आये क्यों थे
महका कर दिन-रातों को
साँसों में समाये क्यों थे

दिन पहाड़ सा बैठा रहता
रात भी कहाँ गुज़रती है
तेरी एक ख़बर पाने को
रूह मारी-मारी फिरती है

कुछ उठता दिल से रह-रह कर
कुछ पलकों से बह जाता है
गा देता हूँ कभी गीत कोई
कुछ होठों में रह जाता है

आओ मुझसे ख़ुद को ले जाओ
मेरा मैं मुझे वापस कर दो
न मुझमे तुम बचे, न तुझमे मैं
करम अब इतना बस कर दो


No comments:

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ? हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास...