मेरा था आँगन
मेरा शजर था
मुझसे जो छूटा 
मेरा ही घर था

टूटे वो सपने
छूटे वो अपने
दो कौड़ी दे के
सब छीना जग ने

मेरी थीं वो रातें
मेरा सहर था
मुझसे जो छूटा
मेरा ही घर था

तन्हा सा मन
सूना ये गगन
रुठ गया क्यों
मुझसे यूँ जीवन

मेरी थीं गलियाँ
मेरा शहर था
मुझसे जो छूटा
मेरा ही घर था

मेरा था आँगन
मेरा शजर था
मुझसे जो छूटा
मेरा ही घर था

No comments:

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ? हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास...