ख़ुदा के वास्ते फिर ना कोई ख़ुदा हो जाए
अच्छा हो मोहब्बत वाला ही मसीहा हो जाए
कितना क़रीब ले आती है दो दिलों को मोहब्बत
कि मैं उसके जैसा और वो मुझ सा हो जाए
ज़िन्दगी कब तक मुझसे छुपती रहोगी
कभी घर पे आओ, थोड़ी सी तो राब्ता हो जाए
अब तो थक गया हूँ सहर से चल-चल कर
कोई दोपहर में पीपल वाली हवा हो जाए
इस क़दर पहन लेते हैं लिबास अपने ऊपर
कि अपनी नज़र में ही कोई गुमशुदा हो जाए
उमीद का दामन मत छोड़ तू ऐ मुसाफ़िर
आएगा फिर कोई कि हिन्द में ज़लज़ला हो जाए
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