मेरी बर्बादी का मंजर मुझसे ही तुम पूछते हो
किसके हाथ में था खंज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो

हवा से पूछो तो जिसने गिराया इन शाखों को
किस बावत उठा बवंडर, मुझसे ही तुम पूछते हो

ग़ुबार के नीचे से देखो चीखें किसी की आती हैं
इस मोड़ पे थे किस-किसके घर, मुझसे ही तुम पूछते हो

उस आग को तुमने फूंका था जब वो चिंगारी थी
कैसे जला है ये शहर, मुझसे ही तुम पूछते हो

रोती है रातों को जो ख़्वाब सुनहरे देखती थीं
क्यूँ है उन आखों में डर, मुझसे ही तुम पूछते हो

मुसाफिर से भी पहले, जो कदम उठे इन राहों पर
वो आते क्यूँ नहीं नज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो


मेरे नाम के हिस्से में
             एक शाम सुहानी लिख देना
नाम मेरा कोई पूछे तो
             बस तेरी दीवानी लिख देना

याद मेरी जो आये तो
             अश्क़ों को हर्फ़ बना लेना
शब् की स्याह सफहों पर तुम
             दिल की कहानी लिख देना

याद है तुमको वो पल क्या
              जब तुम जाने वाले थे
आँखों से तूने जो पोछा था
              उसको न पानी लिख देना

बरस रहे थे हम तुम दोनों
              भींग रहे थे हम तुम दोनों
खामोशी में जो जन्मी थी वो
               नज़म पुरानी लिख देना

गीत जो हमने गाये थे
              कसमें जो हमने खायी थीं
मैं उनमे जीने मरने लगी
              इसे बस नादानी लिख देना

मेरी ज़िन्दगी के तमाम ग़मों के सिवा
मेरी जां तुझे मैं कुछ और दे न सका

न धूप भरी ज़मीं
न सूरज भरा आसमां
न सुकूँ के दिन-रात
न तेरी चाहतों का जहां
तू चली तो मेरे संग हमसफ़र
मगर उन राहों की मुश्किलो के सिवा
मेरी जां तुझे मैं कुछ और दे न सका

मैं तो उड़ता रहा हूँ बस
अपने ख़्वाबों की खातिर
तेरे भी तो ख्वाब होंगे
कैसे भूल गया मैं आखिर
तुमने तो ऊँची परवाज़ दी मुझे
पर बाँधने वाले कुछ रिश्तों के सिवा
मेरी जां तुझे मैं कुछ और दे न सका

खुद रही है तू क़ैद में एक
और मुझे आज़ाद किया है
सब कुछ अपना छोड़ कर
मेरा जहां आबाद किया है
तूने क्या माँगा था मैं सोचता रहा
मगर मेरे हज़ार झूठे वादों के सिवा
मेरी जां तुझे मैं कुछ और दे न सका
मेरी ज़िन्दगी के तमाम ग़मों के सिवा
मेरी जां तुझे मैं कुछ और दे न सका



ज़िन्दगी अँधेरी राहों पर चलना है
और अनजान मोड़ों से गुज़रना है

बैशाखियाँ फिर से न दे देना मुझको
मुझे तो अब बिन सहारों के चलना है

चाँद सा मामूल नहीं हो सकता मेरा
मुझे देर तलक़ सूरज सा जलना है

अपने आशियाने में मत रोक मुझे
अभी तो सहर होने तक चलना है

देर तो होगी, मुश्किलें भी कम नहीं
हवाओं का रुख़ जो अभी बदलना है

दुनिया जलने-बुझने का सिलसिला सही
किसी दिए को बुझना, किसी को जलना है

दैरो-हरम ही सबब हो गए फ़सादात के
छोड़ो फिर मुसाफ़िर क्या मज़हब का करना है 

प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

जीवन-दुःख के बोझ तले
कन्धा जब झुक जाता है
अंतस की घोर तपिश में 
हृदय पुष्प मुरझाता है 

ऐसे में कोई लगाए हृदय से 
ऐसे में कोई लगाए हृदय से अश्रुधार बंध जाता है 
प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

बूँद-बूँद को जब तरसे मन 
पतझड़ हो जाए ये जीवन 
आशाओं के मेघ छटें और
धू-धू हो सपनों का वन

आये कहीं से स्नेह के छीटें
आये कहीं से स्नेह के छीटें सावन फिर आ जाता है 
प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

नित दिन एक नया समंदर 
प्रस्तुत होता मंथन को 
कर्त्तव्यों के बड़े पर्वत जब 
सम्मुख हों आरोहण को 

अपनों का ही प्यार उसे तब 
अपनों का ही प्यार उसे तब संघर्ष-शक्ति दे पाता है 
प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

आत्म-विश्वास जब क्षत-विक्षत 
जग-दुत्कारों से हो मन आहत 
असफलता की सरिताओं में 
बह-बह कर आजीवन अविरत 

किये वादों का स्मरण ही तब
किये वादों का स्मरण ही तब नव-विश्वास जगाता है 
प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !

प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !
प्रेम से बढ़कर इस जग में कोई भला क्या पाता है !




मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ? हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास...