उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की
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सुमन बिछे पथ नहीं मिलेंगे
शूलों पर ही चलना होगा
भास्कर की शंखनाद सुनो ...
उठो पार्थ, फिर लड़ना होगा
देते क्यों हवि हो सिसक-सिसक कर जीवन की
उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की


द्वंद्व मन का मिटा नहीं है
महा-भारत रुका नहीं है
विवेक से फिर हो मंत्रणा
कृष्ण, सारथी, सखा वही है
पर विचार नहीं अब कर्म करो, कौरवों ने गर्जन की
उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की

समर है ये जीवन का जिसमे
विराम नहीं, विश्राम नहीं
अमर हुए जो जीते लड़कर
हारे हुओं का कोई नाम नहीं
गिर, फिसल मगर तू चल, कर इच्छा-शक्ति मन की
उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की

चिंताओं का कोई अर्थ नहीं
चेष्टा कोई व्यर्थ नहीं
अश्रु, स्वेद, रक्त बिना
खुशियों की कोई शर्त नहीं
हो मन कठोर, भुजा में जोर, बेला ये दमन की
उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की

अर्जुन उठो, योगी बनो
साधना व कर्म करो
भय, चिंता, अहम, संशय
मेरु-अनल में दहन करो
स्वर्ग-सोपान अंतर्दिश, चेतना हो आरोहण की
उठो, चलो, हुंकार भरो, रूख़ करो तुम रण की

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