मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?
हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास नहीं आया। कई बार जॉब से ब्रेक ले चुका है। बार कारण पूछने पर बस ग़ालिब का एक शेर बुदबुदा देता
फ़िक्र-ए -दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ !
अभी कुछ दिनों पहले उसने फिर ब्रेक लिया है। इस बार मैंने सीधे शब्दों में उससे पूछ लिया कि वह आखिर किस चीज़ से भाग रहा है ! आखिर क्यों बार-बार वह कॉरपोरेट छोड़ के निकल जाता है। लेकिन हर बार की तरह इस बार उसने वो घिटा-पिटा जवाब नहीं दिया पर एक लम्बा-चौड़ा सा उत्तर व्हाट्सअप पर भेज दिया। वही यहाँ शेयर कर रहा हूँ।
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मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?
ये बेमतलब की उछल-कूद, दौड़-भाग और व्यर्थ की कवायदें अपने आप को व्यस्त रखने के लिए ठीक हैं लेकिन ये आपको अंदर से पूरी तरह खोखला बना देती हैं और आप एक जिन्दा बेहिस लाश बन कर रह जाते हैं। जीने के मायने खो जाते हैं और आपका ह्रदय विषाद से भर जाता है। लगता है आप एक वर्तुल में घूम रहे हैं। हर दिन वहीं से शुरू होता है, कमोबेश एक जैसा ही बीतता है और फिर वैसे ही नीरस सा ख़तम हो जाता है। आप बेमन से एक व्यस्त दिन की शुरुआत करते हैं और फिर थक कर वापस घर को लौट जाते हैं। ज़माने की नज़रों में आप एक बेहद सफल जीवन जी रहे हैं। एक के बाद एक सफलता की नयी सीढियाँ चढ़ते हैं। पर आपके अंदर के सूनेपन को कोई देख नहीं पाता है। आप इतना सब कुछ पाकर भी दुखी होंगे ये किसी की भी कल्पना से परे है। मैं ऐसी व्यर्थ की व्यस्तता से भागता हूँ। हमेशा कुछ करते रहने की परेशानी, कुछ साबित कर लेने की बेचैनी और झूठी सफलता के दिखावेपन से भागता हूँ। मैं प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा से भागता हूँ। जहाँ मैं स्वयं में होकर नहीं रह पाता हूँ, मैं ऐसी जगहों से भागता हूँ।