तेरा ज़िक्र न हो जिसमे गीत वो सुन पाता नहीं
तेरे बग़ैर कोई ख़्वाब ज़िंदगी का बुन पाता नहीं

रस्ता तो  हो वो जिसपे तुम हो मेरे हमसफ़र
हाथों में तेरा हाथ हो जब मंज़िल आये नज़र
धुप-छाँव हो या हो बारिश या फिर अँधेरा
तुम संग रहो मेरे तो आसां है मेरा हर सफ़र

मेरे हमदम तुमसे ही ज़िंदगी की ये बहार है
हर फूल में खुशबू है, हर लम्हा गुलज़ार है
तेरे दम से रौशनी है मौसम का मिज़ाज़ है
खिलखिलाती है सुबह, शाम खुशगवार है

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ?

मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ? हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास...