बेचैन अकेली रात
हमसफ़र चाँद के
इंतज़ार में
तड़प रही थी

सुबह होने वाली थी 
और उसे डर था
आसमां के पार्क में
शिव-सैनिक जैसा
आएगा सूरज
और उन दोनों को
फिर से
जुदा कर देगा 

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मैं किस चीज़ से भाग रहा हूँ ? हमारा एक दोस्त है। फ़ितरतन धारा के विरुद्ध बहने वाला। बेफ़िक्र, आज़ादी-पसंद और घुमक्कड़। कॉरपोरेट कल्चर कभी उसे रास...