अब नहीं होता

डर कर जीवन अब और नहीं होता
बुलशिट सहन अब और नहीं होता
सपने हैं कई बंद इक बक्से में
ये बोझ वहन अब और नहीं होता

ये कहें ऐसा कर लो अच्छा होगा
वो कहें वैसा कर लो अच्छा होगा
मन चाहता है कुछ और ही करना
पूछ कर चयन अब और नहीं होता

गुस्सा छुपा के है रखना सीखा
सब को बस खुश रखना सीखा
पर जो अंदर है अब वही हो बाहर
झूठ प्रदर्शन अब और नहीं होता

जीकर इतना तो हमने जाना
पाना-खोना बस अफसाना
मिल जाए तो अच्छा, पाने को पर
चंचल मन अब और नहीं होता 

ऐसे में

ये शाम भी उदास है
ठहरी-ठहरी साँस है
जाने किसकी आस है
कोई आस है न पास है

ऐसे में

तुमको जो बुला सकूँ
बुला के ये बता सकूँ
बता के ये जता सकूँ
कि तुमको न भुला सकूँ

ऐसे में

तुम यहाँ जो आ सको
दो पल संग बिता सको
कोई गीत गुनगुना सको
हँसा सको मुझे रुला सको

ऐसे में

दिल को फिर यकीं हो
तुम हो यहीं कहीं हो
न शाम फिर उदास हो
न ये दिल ही ग़मगीं हो




मेरी शख़्सियत के
किसी हिस्से में
एक बर्क़ सी लहराती है
एक हसरत
कोई ख़्वाहिश, कोई आरज़ू

फिर शुरू होता है
एक सिलसिला
ख़यालों का, तस्सवुर का
सोच के समंदर में
मैं डूबता हूँ, उभरता हूँ

फिर जब इरादों का
साहिल मिल जाता है
तो उतरता हूँ ज़मीन पर
क़दम बढ़ाता हूँ
इब्तिदा होती है
एक सफ़र की

कोई सफ़र लम्बा होता है
तो कोई छोटा
कभी मंज़िल मिलती है
तो कभी नहीं
पर कमोबेश
यही सिलसिला होता है
जब भी मैं कुछ करता हूँ

पर इसका एक हिस्सा ही
ज़मीन के बाहर होता है
बड़ा हिस्सा तो मेरे ज़ेहन के
अंदर ही होता है
एक पेड़ की तरह ही
जिसकी जड़ें ज़मीन के
अंदर होती हैं

किसी-किसी पेड़ को
ज़मीन के बाहर आने में
ज्यादा वक़्त लगता है
तो कुछ जल्दी भी आ जाते हैं



जानता हूँ जाना चाहता हूँ मैं किधर
एक डर मगर रोक देती है क़दमों को अक्सर

रह-रह कर दिल में अफ़सोस होता तो है बहुत
अब भी अगर कभी जो देखता हूँ पलटकर

आवाज़ देकर राहें बुलाया करती थीं हमें
हर बार मगर रुक जाते हम मोड़ पे आकर

इब्तिदा में मंज़िल कब साफ़ आती है नज़र
कोहरा हट ही जाता है चलते रहने से मगर

हुआ है कई बार यूँ भी सफ़र में अक्सर
राह गलत थी जाना है ये मंज़िल पे आकर

तुझे मैं जब भुला सकूँ !

दिल में वो प्रीत दे
मैं गीत गुनगुना सकूँ
ये इजाज़त भी दे
तुमको मैं सुना सकूँ

राहों में संग हो
चाहे जिस भी मोड़ तक
छोड़ना तभी मुझे
तुझे मैं जब भुला सकूँ

हो ये यकीं का रिश्ता
पक्का और कच्चा
तुम मुझे आज़मा सको
मैं तुझे आज़मा सकूँ

ख़्वाब तेरे हों जुदा
पर मुझे तुम बता सको
मुख़्तलिफ़ सोचूँ जो
तो मैं तुझे बता सकूँ

तुम मुझको थाम लो
मैं तुमको थाम लूँ
दूर हों न यूँ भी कभी
जो तुझे न मैं बुला सकूँ 

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...