बहते क्यूँ हो, क्यूँ हो चंचल ?
नदिया के सुन ओ जल कल-कल
तीर पे थिर जा, थम जा दो पल
भटक रहे क्यों हो यूँ बेकल ?

आये कहाँ से, कहाँ को है जाना ?
कुछ है तेरा ठौर ठिकाना ?
क्यूँ है तुमको बहते जाना ?
अपना घर पर न बिसराना

भटक-भटक कर क्या पाते हो ?
जन्मों से आते जाते हो
किन रस्तों पे खो जाते हो ?
सांझ पहर फिर पछताते हो

जिस घर से आये उसी घर जाना
रुक जाए तो पा जाए ठिकाना
दो पल जीवन फिर ना गँवाना
लूट ले क्रिया का खजाना

क्रिया है चाबी, तेरा मन है चोर
ले जाता यही सागर की ओर
थाम के पतरी सांस की डोर
बह जा तू अब कैलाश  की ओर 

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