वही ख़ुशबू
वही चेहरा
वही आँखें
वही लम्स
वही आवाज़
वही अंदाज़
वही निस्बत
वही आलम
ख़याल है या
फिर ख़्वाब है कोई !
पर जब
खुली आँखें तो
बस तनहा मैं
ख़ामोश कमरा
सोयी दीवारें
उदास रात
और गीली हवा
तू तो नहीं है कहीं
चाँद भी नहीं है
बंद कर लूँ फिर आँखें
फिर डूब जाऊँ
उन ख़यालों में
फिर वही ख़ुशबू
वही आवाज़
वही चेहरा
हाय तेरा चेहरा !
तुम कितनी सुन्दर
हो !
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