वो गूंज रहा है अब भी एक विलंबित ख़याल की तरह ....

महक उसके सुर की
कशिश उसके धुन की
ज़िन्दगी  हो गई गोया
रात चौदहवीं की

फिर मेरे आसमां में
कोई जगमगाता रहा
साज़ दिल के बजते रहे
वो गुनगुनाता रहा

सहर की आमद हुई
फिर शोर बढ़ने लगा
सुर ढीले होते चले
साज़ धीमा पड़ने लगा

अब बिगड़ रही ज़िन्दगी
बड़े मियाँ के बिगड़ते
हाल की तरह
पर अब भी मन में वो
गूंज रहा है एक विलंबित
ख़याल की तरह  .……

9 comments:

Himanshu Pandey said...

"पर अब भी मन में वो

गूंज रहा है एक विलंबित

ख़याल की तरह"

बेहद खूबसूरत । रचना ने प्रभावित किया । आभार ।

वाणी गीत said...

सुर व् साज ढीले होने पर भी वह रहा विलंबित ख्याल की तरह सुंदर भावाभिव्यक्ति ..!!

Ravi said...

"सुर ढीले होते चले

साज़ धीमा पड़ने लगा





अब बिगड़ रही जिंदगी

बड़े मियाँ के बिगड़ते

हाल की तरह




"पर अब भी मन में वो

गूंज रहा है एक विलंबित

ख़याल की तरह"

अतिसुन्दर रचना, सुदीप
मन को छु गयी

अपूर्व said...

क्या कहूँ सुदीप जी..आपकी कविता द्रुत ताल पर पढ़ता चला गया..पंक्ति-दर-पंक्ति..और अब जब टिप्पणी लिख रहा हूँ तो अंतिम पंक्तिया विलंबित ख्याल की तरह गूँज रही हैं..दिमाग मे..
इन पंक्तियों के उपमान बेहद खास और नये लगे
महक उसके सुर की

कशिश उसके धुन की

जिंदगी हो गई गोया

रात चौदहवीं की

बधाई

ओम आर्य said...

बड़े मियाँ के बिगड़ते

हाल की तरह

पर अब भी मन में वो

गूंज रहा है एक विलंबित

ख़याल की तरह

बहुत ही खुब है.......

बेहतरीन प्रस्तुति

लाज़वाब

संजीव गौतम said...

सुदीप जी टिप्पणी के लिये आभार. इस बहाने आपकी रचना पढने को मिली.
रचना बहुत अच्छी है ख़ासकर ये---
अब बिगड़ रही जिंदगी
बड़े मियाँ के बिगड़ते
हाल की तरह
एक पूरी परम्परा का चित्र खीच दिया आपने बधाई

अपूर्व said...

सुदीप जी..इस बार खयाल कुछ ज्यादा ही विलंबित हो गया है..कहाँ रख दी कलम????

कडुवासच said...

... सुन्दर रचना !!!

Anjay said...

behatareeeen

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