मैं था या शायद न था
किधर था, कहाँ था
था तो किस लिए, किसके लिए था
ख़ुद को था कहाँ ख़ुद का पता

ज़िन्दगी व्यस्त और गुम कहीं
दिन और रात का इल्म नहीं
तलब न जाने किस चीज की
जाने क्या ज़ुस्तज़ू दिल में थी

न सोचा कभी पहले मगर
है कोई एक शख़्स हमसफ़र
जरूरतें जुदा जिसकी
या कहें तो कुछ भी नहीं

दर्द मिले तो एहसास हुआ
सांसें थीं पर जिन्दा न था
मेरे संग पूरी दुनिया थी
ख़ुद से पर जुदा तन्हा था

फिर आई नयी एक सहर
कई सारे सवाल लेकर
कौन हूँ मैं ?
हूँ या नहीं हूँ मैं ?

एक सूरज सा शख़्स आया था कहीं से
जो लगा जीवन के सूत्र जानता हो जैसे
उसके संग देर तलक़ बैठा रहा
रूबरू हुआ ख़ुद से और ख़ुदा से

चलता तो हूँ अब भी मगर
है पर मुझको मेरी ख़बर
सब मेरे अपने से अब लगते हैं
जीवन हो गया एक सुहाना सफ़र

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