प्यास अधिक बढ़ गई मन में
विकलता छायी जीवन में
जगत चक्र में उलझ गया मैं
लिए सैलाब चलूँ नयन में

कविताएं नयी अब लेंगी जनम
मन का ताप मिटाने को
उन्हें ही गुनगुनाता रहूँगा
जग का जाप भुलाने को

1 comment:

Anjay said...

प्यास हो और अमृत मिल जाये...कुछ वैसा ही.

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