तेरे आने से पहले घर का ये समां न था
कैसे कहूँ पहले का तुझसे रिश्ता न था

उम्र भर की ज़िंदगी का कुछ यह तज़ुर्बा था
अपना लग कर भी यहाँ कुछ अपना न था

आये थे यहाँ कहीं और जाने के वास्ते
रस्ता ही था ये कोई मंज़िल का निशां न था

वक़्त बदलता है, हालात बदल जाते हैं
 मैं भी जैसा हूँ पहले कभी वैसा न था

कुछ करने की चाहत, कहीं होने की मशक़्क़त
जीता भला कैसे इन्हीं में गर मरता न था

ख़ुदा हर लम्हे में है, हर शै में है ख़ुदा
मुसाफ़िर अकेला होगा कभी तन्हा न था 

No comments:

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...