मैं भी उस पथ का राही हूँ
पथ का मुझको भी ज्ञान नहीं
गतिमान हूँ कब से जाने
मंज़िल का पर अनुमान नहीं
कोई मिला तो छूटा कोई
पर अक्सर तन्हा ही चलता हूँ
थके पाँव सहलाता खुद से
गिर के खुद ही सम्हलता हूँ
कभी-कभी जो रुक जाता हूँ
लेने को थोड़ा सा दम
मन के प्रश्न खड़े हो जाते
दिशा बदलूं या जाऊं थम ?
पूछे अर्जुन कृष्ण कहाँ है ?
अंतर्मन में द्वंद्व यहाँ है
गीता का फिर पाठ पढ़ाओ
दिशाहीन सारी दुनिया है
जीवन नर का है तो चलना होगा
शूल-फूल सब सहना होगा
सत्य से जब साक्षात्कार हो
तभी सार्थक जीना होगा
पथ का मुझको भी ज्ञान नहीं
गतिमान हूँ कब से जाने
मंज़िल का पर अनुमान नहीं
कोई मिला तो छूटा कोई
पर अक्सर तन्हा ही चलता हूँ
थके पाँव सहलाता खुद से
गिर के खुद ही सम्हलता हूँ
कभी-कभी जो रुक जाता हूँ
लेने को थोड़ा सा दम
मन के प्रश्न खड़े हो जाते
दिशा बदलूं या जाऊं थम ?
पूछे अर्जुन कृष्ण कहाँ है ?
अंतर्मन में द्वंद्व यहाँ है
गीता का फिर पाठ पढ़ाओ
दिशाहीन सारी दुनिया है
जीवन नर का है तो चलना होगा
शूल-फूल सब सहना होगा
सत्य से जब साक्षात्कार हो
तभी सार्थक जीना होगा
No comments:
Post a Comment