क्षितिज, जिस मोड़ पे
धरा गगन से  मिलती है
सुबह-सुबह जहाँ
कली इक उमीद की खिलती है

सूरज लेकर जहाँ आता विहान
शुरू जहाँ करता उत्थान
फिर बाँट कर अपनी ऊर्जा सारी
जहाँ खतम करता ढलान

निरन्तरता है ये जीवन की
आरोहण व अवरोहण की
उर्ध्व-गमन की, अधोपतन की
उन्नयन की, अवनमन की

शाश्वत है ये क्रम प्रकृति का
सुबह आती, फिर आती शाम
हर दिन जैसे नया इक जीवन
औ रात्रि मृत्युपरांत विश्राम 

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