ज़िन्दगी का दायरा
कैसे फैलता चला जाता है
एक सर्किल का लगातार
बढ़ता हुआ जैसे
सरकमफेरेंस हो !

और इंसान मानो उस
इमेजिनरी लाइन के
ऊपर खड़ा
अपने सेंटर से कितना दूर
होता चला जाता है !

उसकी जिम्मेदारियाँ
उस सर्किल की रेडियस हैं
या फिर उसकी ख्वाहिशें ! 

No comments:

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...