मेरी बर्बादी का मंजर मुझसे ही तुम पूछते हो
किसके हाथ में था खंज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो
हवा से पूछो तो जिसने गिराया इन शाखों को
किस बावत उठा बवंडर, मुझसे ही तुम पूछते हो
ग़ुबार के नीचे से देखो चीखें किसी की आती हैं
इस मोड़ पे थे किस-किसके घर, मुझसे ही तुम पूछते हो
उस आग को तुमने फूंका था जब वो चिंगारी थी
कैसे जला है ये शहर, मुझसे ही तुम पूछते हो
रोती है रातों को जो ख़्वाब सुनहरे देखती थीं
क्यूँ है उन आखों में डर, मुझसे ही तुम पूछते हो
मुसाफिर से भी पहले, जो कदम उठे इन राहों पर
वो आते क्यूँ नहीं नज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो
किसके हाथ में था खंज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो
हवा से पूछो तो जिसने गिराया इन शाखों को
किस बावत उठा बवंडर, मुझसे ही तुम पूछते हो
ग़ुबार के नीचे से देखो चीखें किसी की आती हैं
इस मोड़ पे थे किस-किसके घर, मुझसे ही तुम पूछते हो
उस आग को तुमने फूंका था जब वो चिंगारी थी
कैसे जला है ये शहर, मुझसे ही तुम पूछते हो
रोती है रातों को जो ख़्वाब सुनहरे देखती थीं
क्यूँ है उन आखों में डर, मुझसे ही तुम पूछते हो
मुसाफिर से भी पहले, जो कदम उठे इन राहों पर
वो आते क्यूँ नहीं नज़र, मुझसे ही तुम पूछते हो
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