बाहर मुसलसल बारिश हो रही थी
मैं बरामदे में पुरानी खाट पर लेटा था
बिजली गुल थी बहुत देर से पूरे शहर की
और घर के अंदर कोई छोटा दीया भी नहीं जला था

बूँदों की शोर में खोया था मैं
पानी की बड़ी बूँद छत से गिरती थी मेरे ऊपर
ज़रूर दूर कहीं ऊँचे आसमान में
ये बूँदें नीचे आती होंगी तुम्हें छूकर

हलकी रौशनी रोशनदान से छनकर आ रही थी
मेरा ध्यान मेज पर रखी तेरी तस्वीर पर चला गया
पुरानी थी पर ऐसा लगा जैसे कल की ही बात हो
तन्हाई भरी शाम में तेरा ख़याल दिल मेरा जला गया

मैं उठ कर कमरे में गया और लैंप जला ली
आलमारी खोली और वो पुरानी लाल वाली डायरी निकाली
कभी पन्ने पलटता तो कभी खिड़की से झाँकता
अंदर तेरी यादों का साया बाहर रात की चादर काली

संग बिताये लम्हों के एहसासात क़ैद थे पन्नों में
कितना ख़ूबसूरत फ़साना अपना साथ गुज़रा जमाना था
कभी मिले ख़ुदा तो उससे पूछूंगा मैं
ज़िन्दगी तो शुरू की थी अभी, अभी क्यों तुम्हें जाना था?


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