कई लम्बी अँधेरी रातों के बाद
मुख़्तसर सा एक दिन आता है
आखें ठीक से रौशनी में
खुल भी नहीं पाती हैं
कि दिन ढलना शुरू हो जाता है
और फिर वही रातों का कारवां
एक अरसे से
यही सिलसिला चल रहा है
जाने कब थमेगा ये दौर !
दुआ ही तो कर सकता हूँ
सो वो मैं कर रहा हूँ
मुख़्तसर सा एक दिन आता है
आखें ठीक से रौशनी में
खुल भी नहीं पाती हैं
कि दिन ढलना शुरू हो जाता है
और फिर वही रातों का कारवां
एक अरसे से
यही सिलसिला चल रहा है
जाने कब थमेगा ये दौर !
दुआ ही तो कर सकता हूँ
सो वो मैं कर रहा हूँ
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