पग-पग तू छली गयी है
बारंबार ठगी गयी है
साहस को तेरे नमन है
चलती रही तू रुकी नहीं है
कहो तो कब इस जग ने तुझको सच्चा मान दिया है?
तू समझी अबला कह तेरा जग ने गुणगान किया है!

कब से अपने पैरों पर थी
पर थी तब भी पर-निर्भर
भूल तेरी बस इतनी थी
रही समर्पित जीवन भर
तेरे समर्पण को सबने निर्बलता का नाम दिया है
तू समझी अबला कह तेरा जग ने गुणगान किया है!

जब स्वयं से तू लड़कर जीती
जग से भी तू जीत रही है
शनैः-शनैः ही पर निश्चित ही
रात अँधेरी बीत रही है
तेरे ढृढ़-संकल्प ने ही रास्ता कुछ आसान किया है
तू समझी अबला कह तेरा जग ने गुणगान किया है!

रहो अडिग, रहो अटल तुम
नव-विहान को आने दो
आशा की नयी किरण हो
स्वयं को जग पे छाने दो
उगते सूरज को जग में सबने ही सम्मान दिया है
तू समझी अबला कह तेरा जग ने गुणगान किया है!

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