याद है तुम्हे
हमारी गलियों में
कभी -कभी वो
एक शख़्स आता था
चेहरे पे नक़ाब रख के
उसकी पीठ पर
एक टैंक होती थी
पाइप में एक नोजल लगा के
वो एक केमिकल स्प्रे करता था
नालियों में

हम बच्चे पूछते तो कहता कि
सारे मच्छर और जर्म्स
मर जाएंगे इससे

काश हमने वो
केमिकल भी बनायी होती
जिसे स्प्रे करने से
इंसान के अंदर के
मच्छर  भी मर जाते

क्या कुछ नहीं पाल रखा है
हमने ज़ेहन में
इनटॉलेरेंस और हैट्रेड के जर्म्स
जाने कैसे  पनप गए
प्यार जो इनका एंटीडोट है
वो तो खुदा ने हमारी रगों में
पूरा भर के दिया था
अब लगता है ब्लड में
उसका लेवल कम हो गया गया है

शायद इंसान जल्द
कुछ ऐसा इज़ाद कर ले
कि आज जैसे ग्लूकोज़
चढ़ाते हैं रगों में
वैसे कल प्यार भी चढ़ा सकें


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