वर्तमान की ज़मीन के ऊपर
यादों और ख़यालों का
बहुत बड़ा स्पेस है
और मन एस्ट्रोनॉट है
बिना स्पेस शिप और
बिन स्पेस शूट के उड़ जाता है
जब-तब उस स्पेस में
एस्केप वेलोसिटी से
बताओ  भला अब वो ज़मीन
पर वापस कैसे आएगा
उसी स्पेस के
सबसे चमकीले तारे हो तुम
मेरा मन भी चाँद की तरह
चमकता है तुम्हारी रौशनी से 
दिन तुम रख लो
रातें मैं रख लेता हूँ
ख़ामोशियाँ तुम चुन लो
बातें मैं रख लेता हूँ
अपने गीत दे दो मुझे
और मेरी नज़में ले जाओ
चाँद का तसव्वुर रख लूँ मैं
एहसास चांदनी का तुम ले जाओ

जब इस मोड़ से बँट रहीं हैं राहें आज
बाँकी सब भी आधा-आधा बाँट लेते हैं
बस उन लम्हों को छोड़ देना यहीं
उन्हें आज के बाद भी मुकम्मल ही रहने देना

पर वो लम्हे मुकम्मल थे तभी
जब इनमे मैं और तुम दोनों शुमार थे
हमेशा बिना किसी शर्त के
बस उन लम्हों की यादों को
थोड़ा तुम ले जाओ थोड़ा मैं
आज के बाद मैं और तुम साथ
इन यादों में ही रहेंगे

मुझे जब तुमसे बातें करनी होगी
या तेरी उंगलियां छूना चाहूँ कभी
यादों के इसी मोड़ पर वापस आऊंगा चल कर
और उन्ही लम्हों में उतर जाऊँगा मैं
उनमे तुम मिलोगी मुझे वैसे ही
जैसे अब तक मिलती रही थी

तुम्हारा भी जब दिल करे
मेरे कानों में कुछ कहने का
या मेरे कंधे पे सर रख कर सो जाने का
तुम भी आ जाना यहीं
तुम मुझे यहाँ वैसे ही पाओगी
तेरी बाहों को थाम कर
इन्ही राहों में तेरे संग चलते हुए
ख़ुदा भी कभी-कभी
बहुत इमोशनल हो जाता है
और कभी-कभी
बिलकुल इमोशनलेस
तभी तो कभी जम के बारिश होती है
और कभी जम के सूखा

जब जम के बारिश होती है
तो लगता है
अपने इमोशंस सारे वो
एक ही मौसम में खाली कर देता है
फिर बाकी वक़्त जाने क्या करता है

जिस साल वो ज्यादा इमोशनल होता है
उस  साल ज्यादा बारिश होती है
मानसून शायद उसका ही कोई इमोशन है
और साइक्लोन भी 
बचपन से ही मैंने
कुछ आँखों में झाँक कर
उनके सपनों को देखा है
उनके संग जिया हूँ मैं
उनको महसूस किया है मैंने
संग चला हूँ मैं
कभी उनकी लाठी बनकर
उड़ान भरी है मैंने
कभी उनके पंख बनकर

देखा है मैंने अपनी आँखों से
कि कुछ सपने पानी के
बुलबुलों की तरह उठते और
फिर जैसे यथार्थ की
उँगलियों से टकरा कर
गिर कर टूट जाते
और बह जाते
उन आँखों से आँसू बनकर

पर कुछ सपने जिद्दी होते
उड़ते रहते गुरुत्वहीन बनकर
फिर एक दिन अचानक
बड़ी सहजता से उतर जाते
यथार्थ की धरातल पर
उन आँखों में
एक बड़ी चमक पैदा कर

अब उन आँखों को देखने
तरसती हैं मेरी आँखें
पर जब भी यदा कदा
झांकता  हूँ उनमे
देखता हूँ कुछ उदास सपने
कुछ लड़खड़ाते और
कुछ दम  तोड़ते सपने
लेकिन फिर भी
पाता हूँ वहाँ
बहुत सारी
खामोश उम्मीदें  …
 
आसमां में जब मैं बादल देखूँ 
तेरे लब पे काँपता एक हलचल देखूं 
तेरी आँखों के गीले आईने में 
मैं अपनी पेशानी के बल देखूँ 
अब तक तो हँस कर निभा ली हमने 
इस रिश्ते का क्या होगा कल देखूं 
दूर से बस ज़ुबाँ की सुन पाता हूँ 
क्या  उनकी ख़ामोशी कहे वहीँ चल देखूं 
मुसाफ़िर को ज़माना समझे सुख़नवर 
मैं आईने में दीवाना एक पागल देखूं 
नदी कहती है वह
थक गयी है बहते-बहते
रुक कर सांस लेना चाहती है
खुद को समेट कर
महसूस करना चाहती है

समंदर को देखो
बिखरा है पसरा है
बहता नहीं वो
कब से ठहरा है

नदी औरत है
उसमे इमोशंस हैं
वो फ्री फ्लोइंग है
फील करती है वो

मर्द समंदर है
सीने में सब ज़ब्त रखता है
उसमे ठहराव है
लहरें अंदर ही ख़ामोश करता है

दोनों हैं पानी मगर
जुदा हैं दोनों में फ़र्क़ है
एक में फीलिंग्स की मिठास है
दूसरे में लॉजिक का खारापन

लगता है उसके पास
बस दो कमीज़ें हैं
नीली और उजली
उन्ही को वो बदल-बदल
दिन में पहनता है
और रात को ठण्ड में
एक काली चादर ओढ़ लेता है

कभी-कभी जब
उसकी कमीज़ पे
काले-काले धब्बे पड़ जाते हैं
तो जाने कहाँ से
बौछारें आ जाती हैं ऊपर से
और धब्बों को मिटा जाती हैं

कुल मिला जुला कर
इन्ही कपड़ों में
मैनेज कर लेता है बेचारा
सचमुच कितना मुफ़लिस है
आसमां ....

याद है तुम्हे
हमारी गलियों में
कभी -कभी वो
एक शख़्स आता था
चेहरे पे नक़ाब रख के
उसकी पीठ पर
एक टैंक होती थी
पाइप में एक नोजल लगा के
वो एक केमिकल स्प्रे करता था
नालियों में

हम बच्चे पूछते तो कहता कि
सारे मच्छर और जर्म्स
मर जाएंगे इससे

काश हमने वो
केमिकल भी बनायी होती
जिसे स्प्रे करने से
इंसान के अंदर के
मच्छर  भी मर जाते

क्या कुछ नहीं पाल रखा है
हमने ज़ेहन में
इनटॉलेरेंस और हैट्रेड के जर्म्स
जाने कैसे  पनप गए
प्यार जो इनका एंटीडोट है
वो तो खुदा ने हमारी रगों में
पूरा भर के दिया था
अब लगता है ब्लड में
उसका लेवल कम हो गया गया है

शायद इंसान जल्द
कुछ ऐसा इज़ाद कर ले
कि आज जैसे ग्लूकोज़
चढ़ाते हैं रगों में
वैसे कल प्यार भी चढ़ा सकें


हफ़्तों शहर से
बाहर रहता है वो

शहर में होता भी है तो
देर से घर आता है

लंच के टाइम पे
२-४ कॉफी पी लेता है

बिज़ी रहता है बहुत

सुना है तरक़्क़ी हुई है
उसकी अपने ऑफिस में

सीनियर मैनेजर बन गया है

 
वो उसके शहर आया था
 बस वीकेंड भर के लिए
सैटरडे मॉर्निग दोनों ने तय किया
कि मिलते हैं लंच पर

लंच के टाइम पर उसने
ऑफिस से उसको पिक किया
एक अच्छे चाइनीज़ रेस्टोरेंट में
फिर दोनों  ने लंच किया
वापसी में उसने
उसे ऑफिस में ड्राप कर दिया

शाम को वो देर से घर आई
कुक का खाना खाकर दोनों सो गए

संडे का दिन है कल
किसी को ऑफिस नहीं जाना है
एक दूसरे के साथ
बिताने को है पूरा  दिन

ये तो लक्ज़री ही है
आज के लाइफ की

रात को फिर वो चला जाएगा

हस्बैंड वाइफ हैं दोनों …
 

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...