गर्मी की छुट्टियाँ थीं
आदतन मैं गाँव में था
बाँकी सब तो ठीक था
पर आँगन की उदासी
बड़ी खल रही थी

मुझे वहां पसरे हुए
सूनेपन का एहसास हो रहा था
वो शायद इसलिए दुखी था
कि  उसके सर से बूढ़े पेड़ का
साया उठ गया था

मुझे याद कि कितनी चहल पहल
रहती थी आँगन में दिन भर
बच्चों ने झूला बनाकर रखा था
पेड़ की टहनियों पर
घंटो झूलने के बाद जब आँगन में
कूदते थे तो लगता था कि
ख़्वाबों की फ्लाइट लैंड हुई हो

बूढ़े पेड़ ने कभी उस पर अपने
बड़े होने का एहसास नहीं दिलाया था
उसे पता था कि खड़ा है वो इसलिए कि
उसकी जड़ें ज़मीन से जुडी हुई हैं
पर गाँव में एक नया मंदिर बना था
उसकी लकड़ियाँ वहीँ काम आई हैं
बेरहमी से लोगों ने काटा था
उसकी मजबूत और पुरानी जड़ों को

आँगन की बातों से मुझे लगा
मैं भी तो शहर जाकर काट रहा हूँ
गांव से जुडी मेरी जड़ों को
मैं जाने किस मंदिर के काम आऊंगा!
 

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...