सुबह सुबह मैं भी सूरज के साथ निकला
दोनों में किसी का रस्ता नहीं बदला
शुरू हो गई थी जद्दोज़हद एक और दिन की
ढल गया शाम को, दिन भर इतना चला .........
सब चल रहे हैं, पर किधर ये इल्म नहीं। आंखों में कुछ सपने हैं, दिल में अरमान कई। लम्बी दौड़ती सड़कें हैं, मंजिल का नामोनिशां नहीं। एक होड़ है आगे निकलने की, कहीं पहुँचने की। इसी आपाधापी में सब कुछ भूले पड़े हैं। छोटी छोटी बातों में अब खुशी नहीं मिलती है, हाँ इंतज़ार रहता है एक किसी बड़े कारण का, जिस दिन बहुत खुश होंगे। उस दिन, उस पल की तैयारी में लगे हैं। ज़िन्दगी, तुझमे अब वो बात नहीं रही, तेरी ऊँगली थाम कर चलने में अब मज़ा नहीं आता है। तू धीमी हो गई है, ज़माने की रफ़्तार बढ़ गई है। एक जिद लिए दौड़ रहे हैं, तुम्हे बहुत पीछे छोड़ दिया है।
ज़िन्दगी, मैं तेरी टैक्सी में बैठा हूँ
तुमने उम्र का मीटर ऑन कर दिया है
बड़ा मंहगा सफर है, इसमें तो
साँसों का बटुआ खाली हो जाएगा
4 comments:
ज़िन्दगी तेरी टैक्सी में बैठा हूँ
तुमने उम्र का मीटर औन कर दिया है
बड़ा मंहगा सफर है, इसमे तो
साँसों का बटुआ खाली हो जाएगा
बहुत खूब...वैसे जिंदगी की टैक्सी तभी तक है जब तक बटुए मे दम है..
..सही बात कही है.
ज़िन्दगी तेरी टैक्सी में बैठा हूँ
तुमने उम्र का मीटर औन कर दिया है
बड़ा मंहगा सफर है, इसमे तो
साँसों का बटुआ खाली हो जाएगा
-क्या बात है, वाह!!
वाह जी बहुत खुब ।
सुबह सुबह मैं भी सूरज के साथ निकला
दोनों में किसी का रस्ता नहीं बदला
awesome thought....
ज़िन्दगी तेरी टैक्सी में बैठा हूँ
तुमने उम्र का मीटर औन कर दिया है
बड़ा मंहगा सफर है, इसमे तो
साँसों का बटुआ खाली हो जाएगा
kya mast likha hai bhai,
aisa to sach hi hai.Appke mere aur sab ke liye.
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