महक उसके सुर की
कशिश उसके धुन की
ज़िन्दगी हो गई गोया
रात चौदहवीं की
फिर मेरे आसमां में
कोई जगमगाता रहा
साज़ दिल के बजते रहे
वो गुनगुनाता रहा
सहर की आमद हुई
फिर शोर बढ़ने लगा
सुर ढीले होते चले
साज़ धीमा पड़ने लगा
अब बिगड़ रही ज़िन्दगी
बड़े मियाँ के बिगड़ते
हाल की तरह
पर अब भी मन में वो
गूंज रहा है एक विलंबित
ख़याल की तरह .……
कशिश उसके धुन की
ज़िन्दगी हो गई गोया
रात चौदहवीं की
फिर मेरे आसमां में
कोई जगमगाता रहा
साज़ दिल के बजते रहे
वो गुनगुनाता रहा
सहर की आमद हुई
फिर शोर बढ़ने लगा
सुर ढीले होते चले
साज़ धीमा पड़ने लगा
अब बिगड़ रही ज़िन्दगी
बड़े मियाँ के बिगड़ते
हाल की तरह
पर अब भी मन में वो
गूंज रहा है एक विलंबित
ख़याल की तरह .……