वो गूंज रहा है अब भी एक विलंबित ख़याल की तरह ....

महक उसके सुर की
कशिश उसके धुन की
ज़िन्दगी  हो गई गोया
रात चौदहवीं की

फिर मेरे आसमां में
कोई जगमगाता रहा
साज़ दिल के बजते रहे
वो गुनगुनाता रहा

सहर की आमद हुई
फिर शोर बढ़ने लगा
सुर ढीले होते चले
साज़ धीमा पड़ने लगा

अब बिगड़ रही ज़िन्दगी
बड़े मियाँ के बिगड़ते
हाल की तरह
पर अब भी मन में वो
गूंज रहा है एक विलंबित
ख़याल की तरह  .……

भाग रहा कहाँ यूँ बेतहाशा आदमी, है किस चीज़ का इस क़दर प्यासा आदमी .....


सुबह सुबह मैं भी सूरज के साथ निकला
दोनों में किसी का रस्ता नहीं बदला
शुरू हो गई थी जद्दोज़हद एक और दिन की
ढल गया शाम को, दिन भर इतना चला .........

सब चल रहे हैं, पर किधर ये इल्म नहीं। आंखों में कुछ सपने हैं, दिल में अरमान कई। लम्बी दौड़ती सड़कें हैं, मंजिल का नामोनिशां नहीं। एक होड़ है आगे निकलने की, कहीं पहुँचने की। इसी आपाधापी में सब कुछ भूले पड़े हैं। छोटी छोटी बातों में अब खुशी नहीं मिलती है, हाँ इंतज़ार रहता है एक किसी बड़े कारण का, जिस दिन बहुत खुश होंगे। उस दिन, उस पल की तैयारी में लगे हैं। ज़िन्दगी, तुझमे अब वो बात नहीं रही, तेरी ऊँगली थाम कर चलने में अब मज़ा नहीं आता है। तू धीमी हो गई है, ज़माने की रफ़्तार बढ़ गई है। एक जिद लिए दौड़ रहे हैं, तुम्हे बहुत पीछे छोड़ दिया है।

ज़िन्दगी, मैं तेरी टैक्सी में बैठा हूँ
तुमने उम्र का मीटर ऑन कर दिया है
बड़ा मंहगा सफर है, इसमें तो
साँसों का बटुआ खाली हो जाएगा

तुम्हें मरना होगा

वो कहते हैं मुझसे  अब तुम्हें मरना होगा  शूली पर चढ़ना होगा  खेले खूब धूम मचाया  जग से क्या कुछ न पाया  पर तुम पा न सके उसे  जिसकी तुम्हें जु...