मुसाफिर तू तन्हा कहाँ है!

एक रस्ता चलता है संग मेरे
एक दरिया गुनगुनाती है संग मेरे
कुछ यादें, कुछ बातें, कुछ नज्में मेरी
कोई खुशबु, कुछ ख्वाब, कई चेहरे
गज़लों की एक पुरानी किताब भी
एक पोटली ग़म की और दूसरी फटी हुई
चलते रहने की जरुरत का एहसास भी
एक ही रस्ते पर सब चलते हैं संग मेरे
मैं तन्हा कहाँ हूँ!

7 comments:

Unknown said...

aapki kavita bal deti hai
urja deti hai..........
badhaai !

संजीव गौतम said...

प्रेरणादायी रचना

Chandan Kumar Jha said...

बहुत खूब.....

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Mitra,anand aa gaya aapki kavita key vachan sey,meri hardik shubh kamnayen,swagat aapka,
dr.bhoopendra

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब कहा है...वाह...
नीरज

Anonymous said...

बेहतर...आप तनहा कहां हैं?

शुभकामनाएं...

Anjay said...

Tokre zimmedariyon k har mod jud chale...
Aadi tirchi hatho ki lakeero k sahare kai mod mud chale.

Tanha chale the...zindagi k safar me...lekin,
Musafir k kadmo k nishano se kai karvaan jud chale...:-)

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