वो यार, वो विसाल, वो रात कहाँ से लाओगे
आरज़ू माना अपने हैं वो हालात कहाँ से लाओगे
दिल संग हो चुका अब दरिया-ऐ-चश्म बहता नहीं
अब बिछडे तो अश्कों की बरसात कहाँ से लाओगे
वो तेरा फिर कहना कि एक मुलाक़ात लाज़िमी है
हम मिल जाएँ पर करने को बात कहाँ से लाओगे
दरमियान अपने एतबार कहीं गुम हो चुका है अब
वो खामोशी, वो सुखन, वो ख़यालात कहाँ से लाओगे
ज़माना बदल जाओगे मुसाफिर किस ख्वाब में जीते हो
वो हौसले, वो इरादे, वो जज़्बात कहाँ से लाओगे
आरज़ू माना अपने हैं वो हालात कहाँ से लाओगे
दिल संग हो चुका अब दरिया-ऐ-चश्म बहता नहीं
अब बिछडे तो अश्कों की बरसात कहाँ से लाओगे
वो तेरा फिर कहना कि एक मुलाक़ात लाज़िमी है
हम मिल जाएँ पर करने को बात कहाँ से लाओगे
दरमियान अपने एतबार कहीं गुम हो चुका है अब
वो खामोशी, वो सुखन, वो ख़यालात कहाँ से लाओगे
ज़माना बदल जाओगे मुसाफिर किस ख्वाब में जीते हो
वो हौसले, वो इरादे, वो जज़्बात कहाँ से लाओगे
3 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ती। लाजवाब रचना
बहुत उम्दा!
Musafir fir uth k chala...matmaile kapde aur potli ko jhad fir se...Jo dhool giri dharti pe...uski khusboo juda si thi ab.
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