क्या ये वही प्रजातंत्र है
जिसके लिए इतनी लड़ाईयां लड़ी थीं
इतनी सारी कुर्बानियों की
हमने कहानियां पढ़ी थीं
फिर क्यूँ भूल गए वो कुर्बानियां
अपने पूर्वजों की वो मेहरबानियाँ
ये उनके सपनों का प्रजातंत्र नहीं है
खो गया लगता इसका मूलमंत्र कहीं है
आज भी इंसान पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है
विचारों से व्यवहारों से परतंत्र कहीं है
मजबूत जड़ से भी शाखाएं मजबूत पनप नहीं सकीं
गाँधी के सपनों की दुनिया बस नही सकी
शिक्षा का प्रसार हम कर नहीं सके
सुविधाओं में सुधार हम कर नहीं सके
तंत्र में लोगों का विश्वास जगा नही सके
योग्य उम्मीदवारों की कतार लगा नही सके
लोग आज भी यहाँ दुःखहाल हैं
गाँवों के मंजर और भी बदहाल हैं
शासक आज भी यहाँ शोषक है
चुनावी जोड़ तोड़ बड़ा रोचक है
शासित आज भी यहाँ शोषित है
रामधीन का बेटा आज भी कुपोषित है
नेताओं मंत्रियों को अपनी जिम्मेदारियों का भान नहीं है
जनता को भी अपने कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है
कदाचित ये सपनों का भारत महान नहीं है ........
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1 comment:
सब के सब तो भूल ही रहे है..उन महान लोगो की कुर्बनियाँ साथ ही साथ वो और भूल रहे है जिनके हाथ मे भारत की बागडोर है और जिन्हे भारतवासियों को और बेहतर स्थिति मे पहुँचाना है..
कविता एक बढ़िया संदेश देती है...
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